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Glossary: Parliamentary Procedure संसदीय प्रक्रिया शब्दावली

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संसदीय प्रक्रिया शब्दावली
धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of thanks):- प्रत्येक वर्ष के प्रारम्भ में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद सदन में उस पर विस्तृत चर्चा के बाद सदन द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव पारित होता है. लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव का पारित होना सरकार की नीतियों के प्रति सहमति माना जाता है.
सदन में गणपूर्ति (Quorum):- संसद के किसी भी सदन के लिए गणपूर्ति अध्यक्ष सहित सदस्यों की वह संख्या है जो सदन की कार्यवाही चलाये जाने के लिए आवश्यक होती है.




सदन का स्थगन (Adjournment):- संसद के प्रत्येक सदन के अध्यक्ष को सदन को सदन को अनिश्चित काल तक स्थगित करने की शक्ति प्राप्त है. स्थगन के बाद पुन: सदन की बैठक बुलाने की शक्ति भी अध्यक्ष की है.
सत्रावसान:- राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के दोनों सदनों अथवा किसी एक सदन के सत्र समाप्त करने की घोषणा अर्थात् सत्रावसान कर सकता है. सत्रावसान के बाद उक्त सदन की बैठक राष्ट्रपति ही बुला सकता है.
विघटन (Dissolution):- राष्ट्रपति द्वारा विघटन (भंग) होने के बाद लोकसभा के वर्तमान समय का जीवन समाप्त हो जाता है और उसके बाद आम चुनाव द्वारा नए सदन का गठन होता है. राज्य सभा का विघटन नहीं होता.
प्रश्नकाल (Question Hour):- संसद के दोनों सदनों की प्रत्येक बैठक के आरम्भ में एक घंटे तक सदस्यों द्वारा मंत्रियों से प्रश्न पूछे जाते हैं तथा उनके उत्तर दिए जाते हैं, उसे प्रश्नकाल कहा जाता है.
शून्यकाल (Zero Hour):- शून्यकाल अर्थात् जीरो आवर प्रश्नकाल से तुरंत बाद (दोपहर 12 बजे के बाद का समय) वह समय होता है जब प्रश्नकाल अपने निर्धारित समय समाप्ति सीमा से आगे बढ़ जाता है. संसदीय नियमों में शून्यकाल का उल्लेख नहीं है.
तारांकित प्रश्न (Starred Question):- संसद सदस्यों द्वारा सदन में मंत्रियों से पूछे गए इस प्रकार के प्रश्नों का मौखिक उत्तर दिया जाता है तथा सदस्य द्वारा उस सम्बन्ध में पूरक प्रश्न (supplementary question) भी पूछे जा सकते हैं.
अतारांकित प्रश्न (Unstarred Question):- संसद सदस्यों द्वारा सदन में मंत्रियों से पूछे गए इस प्रकार के प्रश्नों का लिखित उत्तर दिया जाता है और सदस्य द्वारा उस समंध में पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते.
अल्प-सूचना प्रश्न (Short Notice Question):- ये वे प्रश्न हैं जो सदन में सार्वजनिक महत्व के मामले पर साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित दस दिन की अवधि  से कम अवधि की सूचना देकर पूछे जा सकते हैं.
स्थगन प्रस्ताव (Adjournment Motion):- सदन के किसी सदस्य द्वारा अविलंबनीय (जिसमें विलम्ब करना ठीक नहीं है) सार्वजनिक महत्व के ऐसे विषय पर जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, यह प्रस्ताव लाया जाता है तथा अध्यक्ष की अनुमति से कार्य सूची में दर्ज विषयों को छोड़कर नए विषय पर विचार किया जाता है. यह प्रस्ताव राज्यसभा में नहीं लाया जाता.
प्रस्ताव (Motion):- कोई सदस्य किसी विषय को आधिकारिक रूप में अध्यक्ष की अनुमति से सदन में चर्चा तथा निर्णय के लिए रखता है. सदन पर निर्भर है कि वह प्रस्ताव को स्वीकार करे, अस्वीकार करे अथवा संशोधनों के साथ स्वीकार करे, भिन्न प्रयोजनों के लिये प्रस्ताव कई प्रकार के होते हैं.




मूल प्रस्ताव:- यह प्रस्ताव पूर्ण स्वतंत्र होता है तथा इस प्रकार तैयार किया जाता है कि जिससे सदन के फैसले की अभिव्यक्ति हो सके. यह अपने आप में मौलिक होता है, न तो अन्य प्रस्ताव से उत्पन्न होता है और न ही अन्य प्रस्ताव पर निर्भर करता है. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के निर्वाचन तथा हटाये जाने का प्रस्ताव, राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रस्ताव आदि मूल प्रस्ताव कहलाते हैं.
स्थापन्न प्रस्ताव (Substitute Motion):- यह प्रस्ताव सदन में मूल प्रस्ताव के अनुकूल, उसके विकल्प के रूप में, मूल प्रस्ताव पर चर्चा आरम्भ होने से पूर्व रखा जाता है. दोनों पर सदन में साथ चर्चा आरम्भ होती है. स्थापन्न प्रस्ताव स्वीकार हो जाए तो मूल प्रस्ताव समाप्त हो जाता है तथा उस पर मतदान नहीं होता. यदि स्थापन्न प्रस्ताव में संशोधन स्वीकृत हो जाए तो मूल प्रस्ताव को संशोधित रूप में मदतान के लिए सदन में रखा जाता है.
सहायक प्रस्ताव (Subsidiary Motion):- सहायक प्रस्ताव किसी अन्य प्रस्ताव से सम्बंधित अथवा उस पर निर्भर करते हैं. इनका अपने-आप में महत्व नहीं होता तथा ये मूल प्रस्ताव या सदन की कार्यवाही के सन्दर्भ के बिना सदन का फैसला बताने योग्य नहीं होते. सहायक प्रस्तावों की तीन श्रेणियां हैं – 1. अनुषंगी प्रस्ताव 2. प्रतिस्थापक प्रस्ताव3. संशोधन
अनुषंगी प्रस्ताव (Ancillary Motion) :- सदन की प्रथा द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यों की आगे की कार्यवाही के लिए नियमित उपाय के रूप में मान्यता दी जाती है. ये सहायक प्रस्ताव के रूप में विधेयक पर चर्चा, प्रवर या संयुक्त समिति को सौंपने, विधेयक पास किये जाने से सम्बंधित होते हैं.
प्रतिस्थापक प्रस्ताव (Superseding Motion) :- यह विलंबकारी सहायक प्रस्ताव के रूप में होता है. किसी अन्य विषय पर चर्चा के दौरान उस विषय का स्थान लेने के लिए कोई सदस्य इसे सदन में पेश कर सकता है.
संशोधन प्रस्ताव (Amendment Motion):- संशोधन सदन में चर्चा के दौरान पेश किया जाता है जिसका उद्देश्य मूल प्रस्ताव, विधेयक के खंड प्रस्ताव, संकल्प में आंशिक रूप से संशोधन करना अथवा स्थानापन्न करना होता है.
अनियत दिन वाले प्रस्ताव:- अध्यक्ष द्वारा गृहीत करने के बाद जिस पर चर्चा के लिए कोई दिन नियत न किया गया हो, ये कार्य मंत्रणा समिति के समक्ष रखे जाते हैं जो चर्चा के लिए प्रस्तावों का चयन कर समय नियत करती है.
संकल्प (Resolution):- सार्वजनिक हित से जुदा हुआ मामला किसी सदस्य द्वारा सदन में चर्चा के लिए संकल्प एक प्रक्रियागत उपाय है. यह मूल प्रस्ताव के रूप में सिफारिश की घोषणा, सन्देश देने, स्थिति की ओर ध्यान आकृष्ट करने तथा निवेदन के रूप में होता है.
अविश्वास प्रस्ताव (No-Confidence Motion):- किसी सदस्य द्वारा लोकसभा में मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. प्रस्ताव गृहीत होने तथा अनुमति मिलने के दस दिन के भीतर बहस के लिए लाया जाता है. प्रस्ताव पास हो जाने पर सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद को त्याग-पत्र देना होता है. 
अनुदान मांगें (Demands for Grants):- बजट में प्रत्येक मंत्रालय के लिए प्रस्तावित वित्त के सदन से मंजूरी के लिए जो मांगें होती हैं वे अनुदान मांगें कहलाती हैं. इसका स्वरूप सरकार द्वारा लोकसभा से निवेदन का है कि मांगी गयी राशि को स्वीकार कर खर्च करने का अधिकार दिया जाए.
कटौती प्रस्ताव:-  अनुदान मांगों पर चर्चा में मंत्रालयों की नीतियों की बारीकी से छानबीन के दौरान सदस्य सहायक प्रस्ताव पेश कर मंत्रालय की नीति का अनुमोदन न कर, मितव्ययिता के सुझाव लाकर, विशिष्ट क्षेत्र में मंत्रालय का ध्यान आकृष्ट कर सकते हैं. ये सहायक प्रस्ताव ही कटौती प्रस्ताव कहलाते हैं. 
सांकेतिक कटौती प्रस्ताव:- जन नीतियों के लिए अनुदान मांगों पर विपक्ष द्वारा सरकार की आलोचना पर विपक्ष के प्रति सद्भाव रखते हुए इस कटौती में कहा जाता है कि – माँग की सम्पूर्ण राशि में से 100 रुपए की कटौती की जाए. यह केवल सांकेतिक होती है.
मितव्ययता कटौती प्रस्ताव:- इस प्रकार के कटौती प्रस्ताव का उद्देश्य सार्वजनिक व्यय में मितव्ययता लाने के लिए माँग की राशि में निश्चित (उल्लिखित राशि) की कमी करना होगा.
नीतिगत कटौती प्रस्ताव:- इस प्रकार के प्रस्ताव उसके प्रस्तावक सरकार की नीति से घोर असहमति व्यक्त कर लाते हैं जिससे प्रस्ताव होता है कि माँग की सम्पूर्ण धनराशि घटाकर 1 रुपया कर दी जाए. यह प्रस्ताव पास होना सरकार की बड़ी पराजय होता है.
धन विधेयक (Money Bill):- ऐसे सभी वित्त विधेयक धन विधेयक होते हैं जो संविधान के अनुच्छेद 110 में उल्लिखित मामलों से सम्बंधित हों तथा जिहें लोकसभा अध्यक्ष इस आशय का प्रमाण-पत्र दे दे. यह विधेयक केवल लोक सभा में प्रस्तुत होता है.
अनुपूरक अनुदानों की मांगें (Demands for Supplementary Grants):- वित्त वर्ष के दौरान (समाप्ति के पूर्व) किसी नयी सेवा अथवा मद की आवयश्कता उत्पन्न हो जाए तो भारत का राष्ट्रपति उस सेवा के लिए अनुपूरक अनुदानों की राशि का अनुमानित विवरण संसद के समक्ष रखवाता है. ये मांगें वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पूर्व संसद में पेश तथा पास की जाती हैं.
अतिरिक्त अनुदानों की मांगें (Demands for Additional Grants):- यदि वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उस वर्ष के लिए आवंटित की गयी राशि से अधिक खर्च हो गयी हो तो राष्ट्रपति उसके लिए अतिरिक्त अनुदानों की मांगें लोकसभा में पेश करवाता है.
प्रत्यनुदान (Vote of Credit):- किसी राष्ट्रीय आपात के लिए धन की अप्रत्याशित माँग को पूरा करने के लिए जिसका विस्तृत ब्यौरा नहीं दिया जा सकता है, सदन प्र्त्यनुदान के रूप में एकमुश्त धनराशि दे सकता है.
अपवादानुदान (Exceptional Grant):- सरकार को विशेष प्रयोजन के लिए अपवादानुदान के रूप में निश्चित धनराशि सदन द्वारा दी जाती है. यह अप्वादानुदान वित्तीय वर्ष के साधारण खर्च का भाग नहीं होता.
प्रतिनिहित विधान:- संसद के पास समय तथा विशेषज्ञता के अभाव के कारण वह केवल विधियों की मूल रुपरेखा बनाकर अन्य सीमाओं के भीतर विस्तृत नियम-विनियम सरकार पर ही छोड़ देती है. इसे अधीनस्थ विधान भी कहा जाता है.
गिलोटिन (Guillotine):- संसद की कार्यमंत्रणा समिति बजट सहित सभी अनुदान मांगों को स्वीकृत करने के लिए समय सीमा निर्धारित करती है. अंतिम दिन जिन मांगों पर चर्चा न हुई हो उन्हें भी मतदान के लिए रख दिया जाता है. इस प्रक्रिया को जिसमें अधिकाँश मांगें बिना चर्चा के पास हो जाती हैं, गिलोटिन कहते हैं.
कार्यमंत्रणा समिति:- संसद के प्रत्येक सदन की कार्यमंत्रणा समिति यह सिफारिश करती है कि सरकार द्वारा लाये गए विधेयकों तथा अन्य कार्यों को निपटाने के लिए कितना समय निर्धारित किया जाए. लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा का सभापति अपने सदन में इसके अध्यक्ष होते हैं.




लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee):- लोक लेखा समिति जिसमें 22 सदस्य (15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा) होते हैं, संसद द्वारा सरकार को प्रदान की गयी राशि के विनियोग संबंधी लेखाओं की जांच करती है. समिति यह सुनिश्चित करती है कि प्रदान की गयी राशि प्राधिकृत रूप से उसी प्रोयजनार्थ खर्च हो, जिसके लिए वह दी गयी थी.
प्राक्कलन समिति (Estimate Committee):- प्राक्कलन समिति में 30 सदस्य (सभी लोकसभा से) होते हैं. यह “स्थायी मितव्ययता समिति” के रूप में कार्य करती हुई सरकारी फिजूलखर्ची रोकने, प्रशासन में मितव्ययता तथा कुशलता लाने के लिए सुझाव तथा वैकल्पिक नीतियाँ सुझाती है.
संचित निधि (Consolidated Fund):- संविधान के अनुच्छेद 266 के अंतर्गत भारत की संचित निधि का उपबंध है. संचित निधि में करों, ऋणों, अग्रिम राशियों आदि द्वारा भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व जमा होता है. इस निधि में से धनराशि संसद द्वारा पास किये जाने वाले विनियोग अधिनियम द्वारा ही निकाली जा सकती है.
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