राजस्थानी चित्रकला एवं लोक कलाएंराजस्थानी चित्रकला एवं लोक कलाएं

राजस्थानी चित्रकला एवं लोक कलाएं

राजस्थान में चित्रकला की कई शैलियां है।

उदयपुर शैली

राजस्थानी चित्रकला की मूल शैली है।
उदयपुर शैली का प्रारम्भिक विकास राणा कुम्भा के काल में हुआ।
उदयपुर शैली का स्वर्णकाल जगत सिंह प्रथम का काल रहा। महाराणा जगत सिंह के समय उदयपुर के राजमहलों में “चितेरों री ओवरी” नामक कला विद्यालय खोला गया जिसे “तस्वीरां रो कारखानों”भी कहा जाता है।
विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतन्त्र नामक ग्रन्थ में पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से मानव जीवन के सिद्वान्तों को समझाया गया है।
पंचतन्त्र का फारसी अनुवाद “कलिला दमना” है, जो एक रूपात्मक कहानी है। इसमें राजा(शेर) तथा उसके दो मंत्रियों(गीदड़) कलिला व दमना का वर्णन किया गया है।
उदयपुर शैली में कलिला और दमना नाम से चित्र चित्रित किए गए थे।
प्रमुख चित्रकार – मनोहर लाल, साहिबदीन कृपा राम, उमरा।
चित्रों के विषय – आर्श रामायण, गीत गोविन्द, भ्रमर गीत।
प्रमुख रंग – लाल, पीला
वृक्ष, पशु, पक्षी – कदम्ब, हाथी,चकौर
पुरुष – गठीला शरीर, छोटा कद, लम्बी मूछें, पगड़ी, कमर में पताका, कान में मोती।
स्त्री – मछली जैसी आँखे , लम्बी नाक, पारदर्शी औढनी।

नाथद्वारा शैली

चित्रकार – नारायण, घीसाराम, चतुर्भुज, उदयराम, खूबीराम
विषय – कृष्णलीला, श्रीनाथ जी के विग्रह, राधा कृष्ण यशोदा के चित्र।
प्रमुख रंग – पीला, हरा।
पुरुष – पुष्ट शरीर, तिलक
स्त्री – तिरछी चकोर की आंखे, उरोजों का गोल उभार, मांसल शरीर, मंगल सूत्र
विशेष – पिछवाई चित्रण (मंदिर में मूर्ति के पीछे चित्र बनाना)

देवगढ़ शैली

चित्रकार – बैजनाथ, चोखा, कँवला
विषय – शिकार के दृश्य, अन्तः पुर, राजसी ठाट-बाट, सवारियां।
विशेष – देवगढ़ शैली में जयपुर, जोधपुर,उदयपुर तीनों सहेलियों का प्रभाव है।

चावंड शैली

चित्रकार – नसीरुद्दीन (निसरदी)
विषय – प्रताप के शाशनकाल में शुरू में एवं अमर सिंह के समय नसीरुद्दीन ने रागमाला ग्रन्थ चित्रित किया।
विशेष – आकाश को सर्पिला कार व् लहरिया दार तरंगित बादलों के रूप में प्रदर्शित किया।

जोधपुर शैली

इस शैली पर मुगल शैली का प्रभाव हैं, जसवंत सिंह प्रथम का इस शैली का स्वर्णकाल काल रहा है।
इस शैली में चित्र राजकीय विषय के ऊपर बनाये गये है। इस शैली में अजंता शैली की परम्परा का निर्वाह किया गया है। मारवाड शैली के पूर्ण विकास का काल 16 वीं से 17 वीं सदी रहा है। यह शैली बाद में मुग़ल शैली सेइतनी से इतना प्रभावित हुई की अपनी सत्ता भी खो दी। मुग़ल शैली के प्रभाव के कारण इसमें विलासिता पूर्ण चित्र भी बनाये गये। यह शैली अंत में सामाजिक जीवन के प्रभाव में भी आई।

राव मालदेव (1531 से 1562 ई.)

मारवाड़ की कला एवं संस्कृति का सम्पूर्ण श्रेय राव मालदेव को ही जाता है, इससे पूर्व यह शैली मेवाड़ से पूर्णत: प्रभावित थी।
राव मालदेव समय चोखेलाव महल में मार्शल जैसे चित्र बनाये गये। जिसमे बल्लियों पर राम-रावण युद्ध के बारे में चित्रण किया गया जिसका मूल उद्देश्य पौराणिक गाथाओं का यशोगान करना था।
इनके समय मारवाड़ एक स्वतंत्र चित्र शैली के रूप में उभरा

चित्रकार – नारायण दास, शिवदास, अमरदास, किशन दास, देवदास भाटी, वीरजी,रतनजी भाटी।
विषय – ढोल मारु, नाथ चरित्र, सूरसागर, रागमाला सैट, पंचतंत्र, कामसूत्र।
प्रमुख रंग – पीला
विशेष – आकाश को सर्पिला कार व् लहरिया दार तरंगित बादलों के रूप में प्रदर्शित किया।

बीकानेर शैली

प्रमुख चित्र – कृष्ण लीला, भागवत गीता, भागवत पुराण, रागमाला , बारहमासा, रसिक प्रिया, रागरागिनी, शिकार महफ़िल, सामंती वैभव के दृश्य
पुरुष आकृति – दाढ़ी-मूंछों युक्त वीरता का भाव दिखाती हुई उग्र आकृति, बड़ी पगड़ी, फैला हुआ जामा, पीठ पर ढाल व हाथ में भाला लिए हुए।
स्त्री आकृति – इकहरी तन्वंगी नायिका, धनुषाकार भृकुटी, लम्बी नाक, उन्नत ग्रीवा एवं पतले अधर, तंग चोली, घेरदार घाघरा, मोतियों के आभूषण व पारदर्शी ओढ़नी
उस्ता कला – बीकानेर शैली के उद्भव का श्रेय उस्ता कलाकारों को जाता है। इसका जन्म बीकानेर में हुआ, तथा यहाँ के चित्रकार अपने चित्र पर अपना नाम व तिथि अंकित करते थे।
राजा अनूपसिंह – इनके समय में बीकानेर शैली का स्वर्ण काल देखने को मिलता है। इनके समय के प्रमुख चित्रकार अलीरजा, हसन व रामलाल थे।

किशनगढ़ शैली

किशनगढ़ शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय एरिक डिक्सन व डॉ. फैयाज अली को जाता है। एरिक डिक्सन व कार्ल खंडालवाड़ा की अंग्रेजी पुस्तकों में किशनगढ़ शैली के चित्रों के सम्मोहन और उनकी शैलीगत विशिष्टताओं को विश्लेषित किया गया है।
पुरुष आकृति – समुन्नत ललाट, पतले अधर, लम्बी आजानुबाहें, छरहरे पुरुष, लम्बी ग्रीवा, मादक भाव से युक्त नृत्य, नुकीली चिबुक, कमर में दुपट्टा, पेंच बंधी पगड़ी, लम्बा जामा
स्त्री आकृति – लम्बी नाक, पंखुड़ियों के समान अधर, लम्बे बाल, लम्बी व सुराहीदार ग्रीवा, पतली भृकुटी (बत्तख, हंस, सारस, बगुला) के चित्र
किशनगढ़ शैली में गुलाबी व सफेद रंग की प्रधानता है, इस शैली में मुख्यतः केले के वृक्ष को चित्रित किया गया है।

बणी-ठणी

राजा सावंत सिंह (नगरीदास) की प्रेयसी थी, चित्रकारों ने इन्हें राधा के रूप में चित्रित किया।
कलाकार मोरध्वज निहालचन्द ने बणी-ठणी को राधा के रूप में चित्रित किया।
किशनगढ़ शैली में इस चित्र में नारी सोंदर्य को परिभाषित किया गया है।
बणी-ठणी का निर्माण 1778 में हुआ तथा इसका आकर 48.8 सेमी. × 36.6 सेमी. है।
यह चित्र आज भी किशनगढ़ महाराज के संग्रालय में मौजूद है तथा इसका एक मौलिक स्वरूप अल्बर्ट हॉल में रखा हुआ है जो सोंदर्य में मोनालिसा से भी कहीं आगे है।
एरिक डिक्सन ने बणी-ठणी भारतीय मोनालिसा की संज्ञा दी। बणी-ठणी का चित्र 5 मई, 1973 में डाक टिकिटों पर भी जारी किया गया
वेसरि – किशनगढ़ शैली में प्रयुक्त नाक का प्रमुख आभूषण।
चांदनी रात की संगोष्ठी – चित्रकार अमरचंद द्वारा सावंत सिंह के समय बनाया गया चित्र।

जयपुर (ढूंढाड़) शैली

मछली के समान व मादक नेत्रों वाले स्त्री चित्र, कमर तक फैले बाल
इस शैली में हरे रंग की प्रधानता है।
प्रमुख चित्रकार – साहिबराम, सालिगराम, लक्ष्मण राम, साहिबराम
साहिबराम ने महाराजा ईश्वरसिंह का आदमकद चित्र बनाया
शिवनारायण जी – तेल चित्र बनाने वाले प्रसिद्ध कलाकार
प्रमुख चित्र – बिहारी सतसई, गोवर्धन धारण, टोडी रागिनी, कृष्ण लीला, साधारण जन-जीवन, रास मण्डल, महाभारत, रामायण, महाराजा सवाई जगतसिंह की हवेली का भित्ति चित्र ,पुण्डरीक जी की हवेली का भित्ति चित्र।
जयपुर शैली में मुख्यतः पीपल के वृक्ष को दर्शाया गया है।
जयपुर शैली में पक्षी में मोर की अधिक प्रधानता है।

अलवर शैली

राजा प्रतापसिंह – अलवर शैली के जन्म दाता
प्रमुख चित्रकार – डालचंद, सालिगराम, बलदेव, गुलामअली, सालगा
योगासन अलवर शैली का प्रमुख विषय है।
मूलचंद हाथी दांत बनाने वाले प्रसिद्ध कलाकार थे।
बसलो चित्रण (बोर्डर का चित्र) – इस चित्र शैली के तवायफों (वेश्याओं) के अधिक चित्र बने।
महाराज शिवदान सिंह ने कामशास्त्र के चित्र बनवाये।

कोटा शैली (हाड़ोती शैली)

महारावल रामसिंह व राजा उम्मेदसिंह कोटा शैली के आश्रयदाता थे।
रामसिंह ने कोटा शैली को स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान किया।
प्रमुख चित्र – कृष्ण लीला, राग-रागिनियाँ, बारहमासा, दरबारी दृश्य, आखेट दृश्य
प्रमुख चित्रकार – गोविन्दराम, डालूराम, लच्छीराम, नूर मोहम्मद।
कोटा शैली में प्रमुखत: पशु-पक्षी में शेर व बत्तख का चित्रण मिलता है।
कोटा शैली का सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण ‘आखेट दृश्य’ है।
कोटा शैली में मुख्यतः नीले रंग की प्रधानता है।
कोटा शैली में मुख्यतः खजूर के वृक्ष को दर्शाया है।
कोटा शैली पर वल्लभ सम्प्रदाय का प्रभाव देखने को मिलता है।
महाराव रामसिंघ के समय बूंदी शैली से स्वतंत्र कोटा शैली का उद्भव हुआ।

बूंदी शैली

राव उम्मेदसिंह बूंदी शैली राजस्थान की विचारधारा का प्रारंभिक केंद्र था राव उम्मेदसिंह के समय बूंदी शैली का सर्वाधिक विकास हुआ। इस शैली का राव उम्मेदसिंह द्वारा जंगली सूअर का शिकार करते हुए एक चित्र प्रसिद्ध है जिसका निर्माण 1750 ई में हुआ। इस शैली में शिकार के चित्र हरे रंग में बनाये गये है।
प्रमुख चित्र – पशु-पक्षी के चित्र, फल-फूलों के चित्र, रागमाला (सर्वाधिक प्रमुख चित्र), दरबार, घुड़दौड़, हाथियों की लड़ाई, बसंत रागिनी, बारहमासा, वासुकसज्जा नायिका।
पुरुष आकृति – पतला शरीर, बड़ी मूछें, झुकी पगड़ी।
स्त्री आकृति -आम के पत्तों जैसी आँखे, लाल चुनरी, लम्बी बाहें।
बूंदी शाली में लाल व पीले रंगों का प्रयोग सर्वाधिक किया गया है।
इस शैली में प्रमुखत: खजूर के वृक्ष को चित्रित किया गया है।
वर्षा में नाचता हुआ मोर राजस्थान की विशेषता है तथा यह क्षेत्र इसके लिए प्रसिद्ध है।
बूंदी शैली मुख्यतः मेवाड़ शैली से प्रभावित थी।
प्रमुख चित्रकार – राजा रामसिंह, राव गोपीनाथ, छत्रसाल और बिशनसिंह आदि ने बूंदी शैली को विशेष प्रोत्साहन दिया
बूंदी शैली में मुख्यतः बत्तख, हिरण व शेर जैसे पशुओं को चित्रित किया गया है।

लोकचित्रण

भित्ति चित्रण

-> महलों, मंदिरों, राजप्रासादों, हवेलियों, की दीवारों पर विविध प्रकार से चित्र बनाने की कला। भित्ति चित्र बनाने वाले चेजारे कहलाते है। शेखावटी की हवेलियां भित्ति चित्रों के लिया प्रसिद्द है।

मांडणा

-> शुभ अवसरों पर घर के आँगन में सफ़ेद खड़िया या गेरू द्वारा बनाये गए चित्रों को कहते है। बाड़मेर में मांडणों में मोर का विशिष्ट अंकन किया जाता है एवं नीले भूरे रंग में मांडने बनाये जाते है।

फड़ चित्रण

-> किसी देवी देवता की कपडे पर चित्रित कथा को फाड् कहते है।
पाबूजी की फड़ राजस्थान की सबसे लोकप्रिय फड़ है, जो नायक जाती के भील भोपों द्वारा बाँची जाती है।

देवनारायण जी की फड़

-> राजस्थान की सबसे प्राचीन एवं लम्बी फड़ है। इसका वाचन जंतर वैश्य के साथ गुर्जर भोंपे करते है।

पिछवाई चित्रण

-> नथवारा शैली का चित्रण, श्रीनाथ जी की मूर्ति के पीछे कृष्ण भगवन की बाल लीला के चित्र उकेरे जाते है। नरोत्तम नारायण को पिछवाई चित्रण के लिए 1981 में राष्ट्रपति पुरस्कार मिला।

राजस्थानी चित्र शैली

भौगोलिक और सांस्कृतिक आधार पर राजस्थान की चित्रकला को चार शैलियों (Schools of Painting)में विभक्त कर सकते हैं, प्रत्येक शैली में एक से अधिक उपशैलियां है :-

  1. मेवाड़ शैली :-  चावंड/ उदयपुर,नाथद्वारा ,देवगढ़ आदि।
  2. मारवाड़ शैली :-  जोधपुर ,बीकानेर ,किशनगढ़, अजमेर, नागौर ,जैसलमेर आदि।
  3. हाडोती शैली  :- कोटा ,बूंदी आदि।
  4. ढूंढाड़ शैली :- आमेर ,जयपुर, अलवर ,उणियारा ,शेखावाटी आदि।

(1) मेवाड़ चित्रकला शैली :-

  • 1260 – तेज सिंह -आहड़ – श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि
  • 1423   मोकल – देलवाड़ा – सुपार्श्वनाथ चरित

1.1 चावंड/ उदयपुर शैली:- महाराणा प्रताप के समय छप्पन की पहाड़ियों  स्थित राजधानी चावंड से मेवाड़ चित्रकला प्रारंभ हुई।इस समय नसीरुद्दीन ने ढोला मारु का चित्र बनाया था।अमर सिंह के समय राग माला का चित्रण नसीरुद्दीन ने किया। इसी समय बारहमासा का चित्रण किया गया।जगत सिंह प्रथम ने चित्रों की ओबरी  का निर्माण करवाया जिसे तस्वीरां रो कारखानों  भी कहा जाता है।जगत सिंह प्रथम का काल मेवाड़ की चित्रकला का स्वर्ण काल था।साहिबुद्दीन नामक चित्रकार महाराणाओं के व्यक्तिगत चित्र किया करता था।संग्राम सिंह द्वितीय के समय कलिला- दमना और मुल्ला दो प्याजा  के लतीफों के चित्र बनाए गए।  मुख्य चित्रकार- नसीरुद्दीन, साहिबुद्दीन, मनोहर, कृपा राम, गंगाराम जगन्नाथ, नूरुद्दीन आदि।

विशेषताएं:-

  • लाल व पीले रंगों का अधिक प्रयोग किया जाता है।
  • शिकार के दृश्यों में त्रिआयामी प्रभाव दिखाई देता है।
  • कदंब के वृक्ष अधिक बनाए गए हैं।

1.2 नाथद्वारा शैली:-    इस चित्रकला शैली पर वल्लभ संप्रदाय का प्रभाव है। श्रीनाथजी को यहां कृष्ण का प्रतीक मानकर पूजा की जाती थी इसी कारण कृष्ण लीलाओं को चित्रों में अंकित करने की प्रथा प्रचलित हुई।वल्लभ संप्रदाय के मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के पीछे दीवारों या कपड़े के परदे पर कृष्ण लीलाओं का चित्रण किया जाता था जिसे पिछवाई कहते हैं।पिछवाई चित्रण में केले के वृक्ष अधिक बनाए जाते थे। वर्तमान में इस शैली से संबंधित है संघ के चित्र व्यवसायिक दृष्टि से कपड़े व कागज पर बनने लगे हैं।

1.3 देवगढ़ शैली:-1660 ई में द्वारिका दास चुंडावत के समय देवगढ़ शैली का प्रारंभ हुआ।श्रीधर अंधारे  ने  इस चित्रकला ने इस चित्रकला को पहचान दी तथा चावंड की चित्रकला से पृथक किया।इस शैली में शिकार हाथियों की लड़ाई राज दरबार के दृश्यों के चित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस शैली को मेवाड़, मारवाड़ व ढूंढाड़ की समन्वित शैली के रूप में देखा जाता है।इस शैली के भित्ति चित्र अजारा की ओबरी ,मोती महल आदि में देखने को मिलते हैं।किस शैली में हरे व पीले रंगों का प्रयोग अधिक हुआ है।

(2) मारवाड़ चित्रकला शैली:-

मारवाड़ शैली के विषय मूल रूप में अन्य शैलियों से भिन्न है।यहां मारवाड़ी साहित्य के प्रेमाख्यान पर आधारित चित्रण अधिक हुआ है।ढोला मारू रा दूहा, वेली कृष्ण रुक्मणी री, वीरमदेव सोनगरा री बात, मृगावती रास ,फूलमती री वार्ता आदि साहित्यिक कृतियों के चरित्र मारवाड़ चित्रकला के आधार रहे हैं।

2.1 जोधपुर शैली:-मालदेव के समय जोधपुर चित्रकला प्रारंभ हुई।जैसे :-उत्तरा अध्ययन सूत्र ,चोखे लाल महल के भित्ति चित्र।सूर सिंह के समय ढोला मारू व भागवत पुराण का चित्रण हुआ।विट्ठल दास चंपावत नामक चित्रकार ने राग माला का चित्रण किया।जसवंत सिंह के समय कृष्ण से संबंधित चित्र अधिक बनाए गए थे।राजा मानसिंह का समय जोधपुर चित्रकला का स्वर्ण काल था। इस समय शिव पुराण ,दुर्गा पुराण ,नाथ चरित्र आदि पुस्तकों का चित्रण किया गया। तक सिंह के समय यूरोपीय प्रभाव चित्रकला में आया। इसी समय HK मूलर ने दुर्गादास राठौड़ का चित्र बनाया।मुख्य चित्रकार- शिवदास ,अमरदास ,जीतमल ,छज्जू आदि।विशेषताएं:-

  • लाल और पीले रंगों का अधिक प्रयोग किया गया है।
  • बादलों का चित्रण अधिक देखने को मिलता है।
  • प्रेम कहानियों का चित्रण जैसे ढोला-मारू, महेंद्र – मूमल का चित्रण किया गया है।
  • हाशिए में पीला रंग भरा जाता है।
  • पुरुष लंबे चौड़े व महिलाएं   ठिगने कद की बनाई गई है।

2.2 बीकानेर शैली:- इस शैली में पंजाबी, मुगल और दकक्नी चित्रकला का प्रभाव था।राजा राय सिंह के समय चित्रकला प्रारंभ हुई। इस समय भागवत पुराण का चित्रण किया गया।बीकानेर शैली के उद्भव का श्रेय यहां के उस्ताओं को दिया जाता है।कालांतर में इनको उस्ता कहा जाने लगा तथा उन्होंने उस्ता कला को जन्म दिया।ऊंट की खाल पर की जाने वाली चित्रकारी उस्ता कला कहलाती है।महाराजा अनूप सिंह के काल में विशुद्ध बीकानेर शैली के दिग्दर्शन होते हैं।

विशेषताएं:-

  • इसमें लाल ,बैंगनी व स्लेटी रंगों का प्रयोग किया गया है।
  • फूल- पत्तियों ,पहाड़ व रेत के टीलोंका चित्रण अधिक किया गया है।
  • बीकानेर व शेखावाटी शैली के चित्रकार चित्र के साथ नाम व तिथि लिखते थे।

2.3 किशनगढ़ शैली:- इस शैली में बल्लभ संप्रदाय का प्रभाव अधिक था।वल्लभ संप्रदाय के प्रभाव के कारण भगवान श्री कृष्ण के चित्र अधिक बनाए गए। सावंतसिंह (नागरीदास) का समय किशनगढ़ चित्रकला का स्वर्ण काल था।मोरध्वज निहालचंद  नामक चित्रकार ने रसिक बिहारी को राधा के रूप में चित्रित किया। मोरध्वज निहालचंद ने रसिक बिहारी का व्यक्तिगत चित्र बनाया जिसे “बणी- ठणी” कहा जाता है।एरिक डिक्सन ने बणी -ठणी को  भारत की मोनालिसा  कहा है।अमीरचंद नामक चित्रकार ने चांदनी रात की गोष्टी नामक चित्र बनाया।एरिक डिक्शन तथा फैयाज अली किशनगढ़ की चित्रकला को प्रकाश में लाए थे।

विशेषताएं:-

  • इसमें कांगड़ा शैली का प्रभाव है।
  • नारी सौंदर्य का चित्रण अधिक किया गया है।
  • सफेद और गुलाबी रंगों का प्रयोग अधिक किया गया है।
  • हाशिए में हल्का गुलाबी रंग भरा जाता है।
  • नारी चित्रों में नाक का आभूषण वेसरी दिखाया गया है।

2.4 अजमेर शैली:- अजमेर शैली की चित्रकला में साहिबा नामक महिला चित्रकार का नाम मिलता है।

2.5 जैसलमेर शैली:  चित्रकला की इस शैली में अन्य किसी भी चित्रकला शैली का प्रभाव नहीं है। इस शैली में मूमल का चित्रण अधिक किया गया है।

2.6 नागौर शैली:- इस शैली में बुझे हुए रंगों (Dull colours)का प्रयोग किया जाता  था। पारदर्शी कपड़े चित्रित किए जाते थे।

(3) हाड़ौती चित्रकला शैली:-   

3.1 बूंदी शैली:- राव सुरजन के समय यह चित्रकला शैली शुरू हुई थी। राव छत्रसाल ने रंग महल बनवाया जो सुंदर  भित्ति चित्रों से सुसज्जित है।राव उम्मेद सिंह का समय बूंदी चित्रकला का स्वर्ण काल था। उम्मेद सिंह ने चित्रशाला की स्थापना की थी जो भित्ति चित्रों का स्वर्ग है।बूंदी शैली के अंतर्गत राव उम्मेद सिंह का जंगली सूअर का शिकार करते हुए बनाया चित्र (1750ई )प्रसिद्ध है।बूंदी शैली मेवाड़ शैली से प्रभावित रही है। राग रागिनी ,नायिका भेद ,ऋतु वर्णन ,बारहमासा ,कृष्ण लीला दरबार ,शिकार, हाथियों की लड़ाई ,उत्सव अंकन आदि बूंदी शैली के चित्र आधार रहे हैं।मुख्य चित्रकार :- रामलाल, अहमद ,साधुराम, सुरजन आदि।

विशेषताएं:- 

  • इस शैली में पशु पक्षियों तथा पेड़ पौधों का चित्रण सर्वाधिक किया गया है।
  • हरे रंग का प्रयोग अधिक किया गया है।
  • सरोवर केले और खजूर का चित्रण अधिक किया गया है।
  • भित्ती चित्रण अधिक किया गया है।

3.2 कोटा शैली:-  कोटा शैली में स्त्री आकृतियों का चित्रण अत्यंत सुंदर हुआ है। यह चित्रकला राम सिंह के समय प्रारंभ हुई थी।भीम सिंह के समय वल्लभ संप्रदाय का प्रभाव अधिक था इसीलिए भगवान श्री कृष्ण के चित्र अधिक बने।उम्मेद सिंह का समय कोटा चित्रकला का स्वर्ण काल था।डालू नामक चित्रकार ने राग माला का चित्रण किया था।

विशेषताएं:-

  • नारी सौंदर्य का चित्रण अधिक किया गया है।
  • शिकार के दृश्यों का चित्रण अधिक किया गया।
  • महिलाओं को भी पशुओं का शिकार करते हुए दिखाया गया।

(4) ढूंढाड़ चित्रकला शैली:-

ढूंढाड़ शैली में मुगल प्रभाव सर्वाधिक है।रज्मनामा (महाभारत का फारसी अनुवाद) की प्रति अकबर के लिए इस शैली के चित्रकारों ने तैयार की थी।

4.1 आमेर/जयपुर शैली:- मानसिंह के समय प्रारंभ हुई थी।मानसिंह के पश्चात मिर्जा राजा जयसिंह ने आमेर चित्र शैली के विकास में योगदान दिया।इस समय बिहारी सतसई पर आधारित बहुसंख्यक चित्र बने। इस शैली के चित्र  रसिक प्रिया और कृष्ण रुक्मणी नामक चित्र ग्रंथों में देखने को मिलते हैं।सवाई जयसिंह ने आमेर में  सूरत खाना का निर्माण करवाया।ईश्वरी सिंह के समय साहिब राम ने आदम कद चित्रण प्रारंभ किया।माधो सिंह के समय भिती चित्रण अधिक किया गया जैसे – पुंडरीक हवेली के भित्तिचित्र, चंद्र महल के भित्ति चित्र, सिसोदिया रानी के महल के भित्ति चित्र आदि।राजा प्रताप सिंह का समय चित्रकला का स्वर्ण काल था।इस समय लालचंद नामक चित्रकार पशुओं की लड़ाई के चित्र बनाता था।

विशेषताएं:-

  • केसरिया, लाल ,हरा और पीले रंगों का अधिक प्रयोग किया गया है।
  • मुगल शैली का प्रभाव सर्वाधिक ।
  • आदम कद  चित्रण, उद्यान चित्रण ,हाथियों का चित्रण और भित्ति चित्र अधिक दिखाई देते हैं।

4.2 अलवर शैली :- राव विनय सिंह का समय अलवर की चित्रकला का स्वर्ण काल था।महाराव शिवदान सिंह के समय कामशास्त्र के आधार पर चित्रण हुआ।बलदेव ने गुलिस्ता नामक पुस्तक का चित्रण किया था।मूलचंद नामक चित्रकार हाथी दांत पर चित्रकारी करता था।अलवर चित्रकला में ईरानी मुगल व जयपुर की चित्रकला का प्रभाव दिखाई देता था।

विशेषताएं:-

  • चिकने उज्जवल और चमकदार रंगों का प्रयोग इस शैली में हुआ है।
  • वेश्याओं के चित्र केवल अलवर शैली में ही बने हैं।
  • योगासन चित्रण और लघु चित्रण इस शैली की अपनी पहचान है।

4.3 उणियारा शैली :-  उणियारा शैली पर जयपुर एवं बूंदी शैली का प्रभाव है।मुख्य चित्रकार:- काशी, राम लखन, धीमा ,भीम ,मीरबक्स आदि।

4.4 शेखावाटी शैली:-।  शेखावाटी के श्रेष्ठ जनों ने बड़ी-बड़ी हवेलियां बनाकर इस कला को प्रोत्साहन एवं प्रश्रय प्रदान किया।नवलगढ़, रामगढ़, फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़ ,मुकुंदगढ़ ,मंडावा ,बिसाऊ आदि स्थानों का भित्ति चित्रण विशेष दर्शनीय है।फतेहपुर स्थित गोयंका की हवेली भित्ति चित्रों की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं।

विशेषताएं:-

  • इस चित्रकला पर यूरोपीय प्रभाव ज्यादा है।
  • नीले तथा हरे रंगों का प्रयोग अधिक हुआ है।
  • इस शैली में तीज त्यौहार ,शिकार ,महफिल एवं श्रृंगारी भावों का अंकन हुआ है।

राजस्थानी चित्र शैली की विशेषताएं

  • लोग जीवन का सानिध्य, भाव प्रवणता का प्राचुर्य, विषय वस्तु का वैविध्य, वर्ण  वैविध्य,प्रकृति परिवेश देशकाल के अनुरूप आदि विशेषताओं के आधार पर इसकी अपनी पहचान है।
  • राजस्थानी चित्रकला में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है उसे मनुष्य के सुख दुख के साथ जोड़ा गया है।
  • राजस्थानी चित्रकला में मुख्य आकृति व पृष्ठभूमि में सामंजस्य बना रहता है।
  • राजस्थानी चित्रकला में रंग, वेशभूषा तथा प्रकृति चित्रण देशकाल के अनुरूप है।
  • राजस्थानी चित्रकला में चमकीले रंगों का प्रयोग तथा प्रकृति का चित्रण अधिक किया गया है।
  • इस चित्रकला में नारी सौंदर्य का चित्रण अधिक हुआ है।
  • मुगल चित्रकारों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता होने के कारण राजस्थानी चित्रकारों ने सामाजिक जनजीवन पर चित्र अधिक बनाए हैं।
  • किले महल हवेलियां मंदिरों में भित्ति चित्रण अधिक किया गया है।जैसे फड़, पिछवाई आदि।

मुख्य आधुनिक चित्रकार

(1) रामगोपाल विजयवर्गीय:-

  •   सबसे पहले एकल चित्र प्रदर्शनी लगाना प्रारंभ किया था।
  • रामगोपाल विजयवर्गीय को पद्मश्री प्राप्त हो चुका है।
  • मुख्य चित्र- अभिसार निशा

(2) गोवर्धन लाल बाबा:-

  • इन्हें भीलो का चितेरा कहा जाता है।
  • मुख्य चित्र- बारात

(3) सौभाग्य मल गहलोत:-

  • इन्हें नीड़ का चितेरा कहा जाता है।

(4) परमानंद चोयल:-

  • इन्हें  भैंसों का चितेरा कहा जाता है।

(5) जगमोहन माथोड़िया :-

  • इन्हें श्वान का चितेरा कहा जाता है।

(6) कुंदन लाल मिस्त्री:-

  • इन्होंने महाराणा प्रताप के चित्र बनाए हैं।
  • राजा रवि वर्मा ने इनके चित्रों को देखकर ही महाराणा प्रताप का चित्र बनाया था।

(7) भूर सिंह शेखावत:-

  • इनकी चित्रकला में राजस्थानी प्रभाव अधिक है।
  • इन्होंने क्रांतिकारियों तथा राष्ट्रभक्त नेताओं के चित्र बनाए हैं।

(8) देवकीनंदन शर्मा:-

  • इन्होंने प्रकृति चित्रण अधिक किया इसलिए इन्हें The Master Of Nature Of Living Object  कहा जाता है।

(9) ज्योति स्वरूप कच्छावा:-

  • इन्होंने Inner Jungle नामक चित्र श्रृंखला का चित्रण किया।

प्रश्न. मेवाड़ शैली का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है
(A) रागमाल ग्रन्थ
(B) रसिक रत्नावलि
(C) श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि
(D) उत्तराध्ययन सूत्र
उत्तर. C

प्रश्न. अलवर शैली में किसकी दो शैलियों का मिश्रण है
(A) जयपुर-कोटा शैली
(B) किशनगढ़-बूंदी शैली
(C) नाथद्वारा-मारवाड़ शैली
(D) जयपुर-मुगल शैली
उत्तर. D

प्रश्न. आदम कद पोट्रेट किस शैली से सम्बन्धित है
(A) जयपुर शैली
(B) नाथद्वारा शैली
(C) किशनगढ़ शैली
(D) कोटा शैली
उत्तर. A

प्रश्न. राजस्थान राज्य में शैली की चित्र कला विकसित हुई
(A)14 वीं शताब्दी में
(B) 15 वीं शताब्दी में
(C) 16 वीं शताब्दी में
(D) 17 वीं शताब्दी में
उत्तर. C

प्रश्न. भगवान श्री कृष्ण की लीलाएँ किस शैली के मुख्य विषय हैं
(A) बूंदी शैली
(B) कोटा शैली 3
(C) नाथद्वारा शैली
(D) किशनगढ़ शैली
उत्तर. C

प्रश्न. राजा नागरीदास का सम्बन्ध है
(A) जयपुर शैली
(B) कांगड़ा शैली
(C) किशनगढ़ शैली
(D) अपभ्रंश शैली
उत्तर. C

प्रश्न. राजस्थान राज्य में लोक कला में मानव शरीर पर निर्मित चित्रों को कहते हैं
(A) पिछवई
(B) कावड़
(C) पाने
(D) गुदना
उत्तर. D

प्रश्न. राजस्थानी चित्र कला संग्रहालय ‘पोथी खाना’ किस स्थान पर है..
(A) जयपुर
(B) जोधपुर
(C) कोटा
(D) डूंगरपुर
उत्तर. A

प्रश्न. राजस्थान राज्य में स्थापत्य कला का जनक किसे कहा जाता है
(A) राणा सांगा
(B) राणा कुम्भा
(C) भारमल
(D) रावल जैसलदेव
उत्तर. B

प्रश्न. मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह के काल में 1605 ई. में चावण्ड की राग माला चित्रित करने वाले चित्रकार का नाम था
(A) अब्दुलसमन्द
(B) निहालचन्द
(C) नसीरुद्दीन
(D) मीर सैय्यद अली
उत्तर. C

प्रश्न. पशु पक्षियों को जिस शैली में विशेष स्थान मिला है
(A) बूंदी शैली
(B) किशनगढ़ शैली
(C) नाथद्वारा शैली मार
(D) अलवर शैली
उत्तर. A

प्रश्न. वह मेवाड़ का कौन सा शासक था जिसने मुस्लिम चित्रकार नसीरुद्दीन से राग माला चित्रित करवाई
(A) महाराणा प्रताप
(B) महाराणा अमरसिंह
(C) महाराणा उदयसिंह
(D) महाराणा राजसिंह
उत्तर. B

प्रश्न. राजस्थान राज्य में किस शासक को स्थापत्य कला का जनक माना जाता है
(A) राणा सांगा
(B) राणा मोकल
(C) अनूप सिंह
(D) राणा कुम्भा
उत्तर. D

प्रश्न. रसिक प्रिय किसकी कृति है
(A) केशवदास
(B) रसिक प्रिय दास
(C) सांवत सिंह
(D) राजसिंह
उत्तर. A

प्रश्न. जवाहर कला केन्द्र भवन स्थित है
(A) कोटा
(B) जयपुर
(C) बीकानेर
(D) जोधपुर
उत्तर. B

प्रश्न. यदि जोधपुर जस्ते की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है तो मोलेला
(A) ताँबे की मूर्तियाँ
(B) प्रस्तर मूर्तियाँ
(C) मिट्टी की मूर्ति
(D) संगमरमर की मूर्ति
उत्तर. C

प्रश्न. नारी सौंदर्य किस शैली की विशेषता है
(A) मेवाड़ शैली
(B) कोटा शैली
(C) बूंदी शैली
(D) किशनगढ़ शैली
उत्तर. D

प्रश्न. कावड़ चित्रित किये जाते हैं
(A) लकड़ी पर
(B) कागज पर
(C) कपड़े पर
(D) मानव शरीर पर
उत्तर. A

प्रश्न. राजस्थान में भित्ति चित्रों को चिरकाल तक जीवित रखने के लिए एक विशेष आलेखन पद्धति है इसे कहते हैं
(A) आराइश
(B) कावड़ ‘
(C) अंकन
(D) पेंटिंग
उत्तर. A

प्रश्न. राजस्थान राज्य में लोक कला में लकड़ी पर निर्मित चित्रों को क्या कहते हैं
(A) पाने
(B) कावड़
(C) फड़
(D) गुदना
उत्तर. B

प्रश्न.  बनी-ठनी किस शैली से सम्बन्धित है
(A) जयपुर शैली
(B) बूंदी शैली
(C) किशनगढ़ शैली
(D) नाथद्वारा शैली
उत्तर. C

प्रश्न. मेवाड़ चित्र कला शैली की प्रमुख विशेषता थी
(A) राधा-कृष्ण के चित्रों की अधिकता
(B) कल्लेदार पगड़ी या टोपी का चित्राकंन
(C) चित्रों में श्रृंगारिकता का समावेश
(D) चटकदार रंगों के प्रयोग
उत्तर. D

प्रश्न. राजस्थान राज्य में शैली के उद्धव का काल कौन सा था
(A) तुगलक काल
(B) मौर्य काल
(C) कम्पनी काल
(D) मुगल काल
उत्तर. D

प्रश्न. राजस्थान राज्य में चित्र कला में कौन सा पक्षी सर्वत्र अंकित है तथा मेवाड़, दंढाड़, मारवाड़ी और हाड़ौती शैलियों के प्रकृति चित्रण के अंकन में विशिष्ट छाप रखता है
(A) तोता
(B) कोयल
(C) मोर
(D) हंस
उत्तर. C

प्रश्न. राग माला पद्धति के चित्र हैं
(A) बूंदी शैली
(B) मेवाड़ शैली
(C) जयपुर शैली
(D) किशनगढ़ शैली
उत्तर. B

प्रश्न. मेवाड़ चित्र कला शैली पर सर्वप्रथम किस क्षेत्र का प्रभाव पड़ा
(A) मालवा
(B) सिंध
(C) कन्नौज
(D) गुजरात
उत्तर. D

प्रश्न. कला धरोहर का संरक्षण तथा राज्य के कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रपति ने जिस २५, कला केन्द्र का उदघाटन जयपुर में अप्रैल, 1993 में किया, वह है
(A) सांस्कृतिक कला केन्द्र
(B) जवाहर कला केन्द्र
(C) इन्दिरा गाँधी कला केन्द्र
(D) राजीव गाँधी कला केन्द्र
उत्तर. B

प्रश्न. राजस्थानी लोक कला में कागज पर निर्मित चित्र को क्या कहते हैं
(A) पाने
(B) पिछवाई
(C) कावड
(D) गुदना
उत्तर. A

प्रश्न. भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ राजस्थान राज्य की किस चित्रकला गेलो की विशेषता है
(A) बूंदी शैली
(B) मेवाड़ शैली
(C) किशनगढ़ शैली
(D) नाथद्वारा शैली
उत्तर. D

प्रश्न. राजस्थान राज्य में लोक कला में कपड़े पर निर्मित चित्रों को कहते हैं।
(A) मृदपात्र
(B) पाने
(C) पटचित्र
(D) कावड़
उत्तर. C

प्रश्न. राजस्थान राज्य में शैली का उद्गम कौन सी शैली से माना जाता है
(A) पाल शैली
(B) अपभ्रंश शैली
(C) गुजरात शैली
(D) नाथद्वारा शैली
उत्तर. B

प्रश्न. राजस्थान राज्य में किशनगढ़ शैली को विश्व में प्रकाशित करने का श्रेय किसे है
(A) राजा नागरीदास
(B) एरिकडिक्सन
(C) महाराणा अमरसिंह
(D) सवाई जयसिंह
उत्तर. B

प्रश्न. राजस्थान राज्य में जैसलमेर के किले की मुख्य विशेषता है
(A) प्रस्तर खण्डों में चूने का उपयोग नहीं किया गया है
(B) सभी प्रस्तर खण्ड एक ही आकार के हैं।
(C) सबसे अधिक ऊँचाई पर हैं
(D) प्रस्तर खण्ड संगमरमर के हैं
उत्तर. A

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